Sunday, April 18, 2021

कोरोना या कोरोना


फिर से घरो में सिमटी हुई दुनिया में प्रशांत का मन दो कोरोना के बीच घूम रहा है। एक ओर कोरोना-वायरस जो फिर से भारत में आतंक मचा रहा है और दूसरा है कोरोना-बियर, जिसको पहली बार पीना उसके हाल में ही हुई गोवा ट्रिप के कई सारे आकर्षण का एक हिस्सा था।

लगातार आती हुई कोरोना वायरस के मामलों के बीच प्रशांत का मन उसे वर्तमान से ध्यान हटाने के लिए फिर से पूर्व की सुखद यादों में ले जा रहा है और इसी में वह अपने आप को  मानसिक रूप से ही सही पर गोवा में समुद्र किनारे आराम करता हुआ पाता है। गोवा में हुई उसकी ट्रिप अब दूर की कोड़ी नज़र आती है। अभी हाल में दोबारा ऐसा घूमना असंभव सा लगता है पर वायरस का भी अपनी एक चाल है.. धीरे ही सही पर फिर से कम होगा... ऐसे समय में ऐसे ही चीज़े अच्छी होने के भरोसे के साथ इंसान जीता है। उसके पास और विकल्प ही क्या है।

गोवा की यादें प्रशांत को एक अलग ही आज़ादी की अहसास देती है। उसका गोवा जाना अनायास ही हुआ पर उसने कभी नही सोचा था कि घूमने और कुछ न करने का मज़ा उसे जो वहाँ मिला, वह शायद ही उसने पहले कभी महसूस किया था। और ऐसा मज़ा कि वह वहाँ फिर से जाने के लिए लालायित है। और अगली कोरोना-बियर पीना उसने तभी के लिए छोड़ा है।

अब कोरोना-वायरस के कारण घर में सिमटी दुनिया कि बात करें तो लगता है घर ही सब कामों का केंद्र हो गया है। आप घर में रहने के अलावा खुद वहीं काम भी कर रहे हो, बच्चो को पढ़ा भी रहे हो और कहीं बाहर भी नहीं जा रहे हो (वैसे अभी तो घर में रहने में ही सभी की भलाई है)।

इस सब विचारो के बीच में प्रशांत कोरोना या कोरोना में दूसरे ही कोरोना (बियर) में ही दांव लगा रहा है.. ताकि सब सामान्य हो और वह फिर गोवा जा पाएं। 

Wednesday, January 1, 2020

कॉफ़ी के साथ दोस्ती की कुछ बात



कॉफ़ी के प्यालो के साथ दो लोग बैठकर बतिया रहे थे। इन दोनों की पहली मुलाकात तो सहकर्मियों के रूप में हुई थी, पर वह रिश्ता दोस्ती के रूप में बदल गया था। इनमे से पहले इंसान, जिसे आप प्रशांत बुला सकते हो, के मन के किसी कोने में यह बात उठ रही थी कि दोस्ती के रिश्ते की खास बात ही यह है कि एक तो उसे आप खुद चुनते हो और दूसरी, कि उसमे उम्र आदि का कोई बंधन नहीं होता है। कौन कब आपका दोस्त बन जाये, यही बात इस रिश्ते को और खूबसूरत बनाता है।

प्रशांत ने जब पहली बार जयपुर में काम करना शुरू किया था, उसके पहले तक उसे लगता था कि वह स्कूल या कॉलेज में दोस्त बनाने वाले दौर को कब का पार कर चुका है और अब शायद ही नए लोगो से वह रिश्ता बन पाए। पर उसे कहाँ पता था कि चीज़े तब और अच्छे से होती है जब आप उसे अपने संकीर्ण नजरिये से देखने की कोशिश न करें।

और जयपुर में ही नए लोगो के उम्र और विचारो की विभिन्नताओं और विशेषताओं ने प्रशांत को खुद कितने नए  मजेदार अनुभवों से मिलवाया है।

"कहाँ खो गए?"  प्रशांत के दोस्त के इन शब्दों ने विचारो में डूबे प्रशांत को एकाएक चौंका सा दिया।

"कुछ नहीं, बस ऐसे ही कुछ सोच रहा था!" मुस्कुराते हुए प्रशांत ने जवाब दिया और दोनों फिर से कॉफ़ी के प्यालो के साथ बतियाने में लग गए।

Saturday, February 23, 2019

कुछ मन में उठते सवाल!



मैं अपने आप को ब्लॉगर या स्टोरी टेलर तो नही कहूँगा पर यह सही है कि मुझे कहानी पढ़ने का शौक बचपन से रहा है और 2007 से अपना यह ब्लॉग भी चला रहा हूँ। पर शर्म की बात यह है कि 2016 से मैने इस पर कुछ नही लिखा और आज अनायास ऑनलाइन काम करने के दौरान अपने ब्लॉगपेज का ध्यान आया और सोचा कुछ लिखता ही चालू..

बात करता हूँ कुछ उन बातों या सवालो पर जिन पर मैं कुछ दिनों से गौर कर रहा था।

- क्यों हम न चाहते हुए भी नेगेटिव बातो पर अधिक ध्यान देते है या उन पर ज्यादा अटकते है? यह हैरानी कि बात नही, कि ज्यादातर सेल्फ-हेल्प वीडियो / बुक्स लोगो को सकरात्मक जीवन या नजरिया सीखाने पर ही होती है तो भी हम नेगेटिव रहने मेँ ज्यादा सहज है।

- जब हम जानते है कि हर एक इंसान दूसरे से अलग है (और कोई किसी से बेहतर या कम नही है) तो क्यों हम लोग श्रेष्ठता या हीन की भावना से पीड़ित हो जाते है? क्या दिक्कत है लोगो को अपने आप को स्वीकार करने में और अपने को ही अपने से हर दिन बेहतर बनाने में।

- आपका मन एक एक बहुत ही शानदार चीज़ है। इसकी विचारो की शक्ति का सही उपयोग जितना फायदेमंद है, उतना ही घातक है इसी शक्ति का दुरपयोग। इस दुनिया में जो भी अपने-अपने क्षेत्र में सफल हुआ है उसमे उसके मन का साथ अहम् रहा है। तो भी क्यों ज्यादातर समय हमारा ही मन हमारा नही होता है?

- एक और बात!! "नार्मल" और "परफेक्ट" की सही परिभाषा क्या है? क्या यह दोनों शब्द ही काल्पनिक आदर्श दुनिया (यूटोपियन) से संबंध नही रखते है? क्या आप बता सकते है कि इस दुनिया मेँ कौन ऐबनार्मल है या इमपरफेक्ट और कौन नही?

चलो, आज 2019 का पहला ब्लॉग लिख ही दिया.. उम्मीद है अपने से ही थोड़ी सी, कि अब ब्लॉगिंग कि आदत पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दूंगा।

Tuesday, July 26, 2016

एक अंतराल के बाद।



न चाहते हुए भी फिर से ब्लॉग अपडेट करने में साल भर से ज़्यादा लग गए।

कितनी चीज़े नई हुई, कितना कुछ बदला है, बहुत कुछ बोलने लिखने को है।

जब आप अकेले बाहर रहते हो, तब कई बाहरी फैक्टर्स आपके संस्कारो और अपने सोचने के तरीके को बहुत प्रभावित करते है।

जब तक मैं अपने घर में रहा तो कई चीज़ों के लेकर मुझे लगता था कि मेरी राय बहुत साफ़ है, कि मुझे क्या चाहिए, क्या नहीं। पर जैसे ही मैं कुछ महीनों से अकेले बाहर रहना शुरू किया। तब बहुत ही आश्चर्यजनक तरीके से कई बाहरी बातों ने मेरे सोचने के तरीको को प्रभावित करने की कोशिश की। कई ऐसी चीज़े जो मेरी ज़िन्दगी में मायने नहीं रखती थी, उनके लिए भी एक अज़ीब सा आकर्षण होने लगा। और इन सब बातों से मन में काफी समय तक द्वन्द रहा। इन सबका एक कारण यह भी था कि अपने घर में आप एक परिचित माहौल में रहते हो और बाहर निकलते ही दूसरी बाहरी बातों के आकर्षण को आप अपने आसपास पाने लगते हो।

ऐसा नहीं है कि जैसा मैं था, मैं वैसा ही रहा, कुछ बातों को लेकर मेरी सोच और साफ़ हुई और कुछ बातों के प्रति मेरी सोच वैसे की वैसे ही रही.

पर कई बार यह बाहरी बातों का आकर्षण ही लोगो से कुछ काम न चाहते हुए ही करवा देता है और वह फिर अपने आप को ऐसी जगह पाते है कि जहाँ वो न तो उगल सकते है, न निगल। 

लाइफ कहो या ज़िन्दगी.. परिस्थियाँ पहले देती है और सीख बाद।

Sunday, May 10, 2015

नये दौर को लेकर कुछ नईं बातें



आख़िरकार लगभग ढाई महीने के बाद मुझे कुछ लिखने का समय मिला। वैसे पहले भी कई बार अपने ब्लॉग के बीच में मैने लम्बा अंतराल लिया है, पर इस बार तो लिखने के लिए बहुत कुछ है, खासकर इंदौर में शुरू हुई मेरे नये दौर के बारे में..

काम की व्यस्तता, समय की अनुपलब्धता अथवा नई  ज़िन्दगी में कुछ ज्यादा ही खोया होना.. पता नहीं क्या कारण रहा इस अंतराल का, पर इंदौर आना मेरी ज़िन्दगी के कुछ बेहतरीन निर्णयों में शामिल हो गया है। नये लोगो  से मिलना, ऑफिस में रहकर काम करना, नई चुनौतियों का सामना करना.. कितना कुछ सीखने को मिल रहा है, अपने कार्यक्षेत्र को लेकर, अपनी ज़िन्दगी की लेकर, अपनी भावनात्मक प्रक्रिया को लेकर।

बेशक़ मैं अपने उस दोस्त का शुक्रगुज़ार हूँ, जिसने शुरुआत से इस संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पर साथ ही साथ मुझे अपने आप पर भी थोड़ा गर्व तो है कि मैने भी अपने "कम्फर्ट ज़ोन" से निकलने की हिम्मत दिखाई। यह इस लिए भी हुआ, क्योंकि अब मैं ज़िन्दगी में अपने हिसाब से कुछ करना चाहता था और अब यह अपने हिसाब से जीने की शुरुआत है।

भगवान महाकाल की कृपा है कि इंदौर में बदलाव की प्रक्रिया पूरी तरह से सुगम रही और एक ही जगह में सब मिल गया। जहाँ तक ऑफिस में रहकर काम करने की बात है तो वह अनुभव इतना अच्छा है कि मुझे रविवार के आने पर कोफ़्त होती है क्योंकि यही दिन उबा देने वाला होता है।

बेहतरीन लोगो के साथ काम करना, समय समय पर मनोरंजन के लिए कुछ पल निकाल लेना इत्यादि बातों ने यहाँ के पूरे माहोल को खुशनुमा बना रखा है। इन सबके साथ मैने जैसे सोचा था वैसे ही स्वास्थ्य के लिए भी समय निकाला है। तो दिन भर का एक संतुलित कार्यक्रम है जिसमे सब शामिल है।


देर से ही सही, पर अब मैं अपने दम से जीना सीख रहा हूँ.. अकेले रहना, अपने पैसे खुद कमाना और अपने हिसाब से सब करना, यह दौर, सब को अपनी ज़िन्दगी में एक बार तो ज़रूर जीना चाहिए.. क्योंकि यही समय आपको आपके बारे में बहुत कुछ सीखा जाता है।

जहाँ तक मेरी बात है, यह समय धीरे धीरे ही सही पर मुझे अपनी ज़िन्दगी खुद के हिसाब से (न कि अप्रासंगिक प्रारूपों के अनुसार) जीने के लिए और प्रेरित कर रहा है। ऐसी ज़िन्दगी, जो मेरी खुद की बनाई हुई होगी, जिसमे दखल होगा सिर्फ मेरे खुद के निर्णयों का एवं मेरे खास लोगो का।

बाकी यह दौर मुझे पर्यटक के बजाय यात्री बनने के लिए भी जरुरी प्रेरणा एवं हिम्मत दे रहा है। कहाँ कुछ समय पहले तक, मैं दमन जाने का सिर्फ सोचता ही रह गया, पर अब कुछेक महीने के बाद मैं अपने आप से अडालज (गुजरात) में एक अद्यात्मिक आश्रय में सप्ताहांत बिताने जाऊंगा।

चीज़े कितनी कुछ बदल चुकी है और वह भी वैसे ही, जैसा मैं चाहता था।
बाकी अब मेरा पूरा ध्यान अपने संगठन को आगे बढ़ाने में एवं अपने कार्य में बेहतर बनने में रहेगा।



और हाँ, कुछ दिनों बाद, फिर से एक पर्यटक के रूप में ही सही, मैं सिक्किम जा रहा हूँ। पर उसके बारे में बाद  में...

Friday, February 20, 2015

कुछ यूहीं ही, रात के पहर में ..



आज सोने से पहले लगा कि लगे हाथ एक ब्लॉग लिख लू ताकि मन में उमड़ते विचारों को थोड़ा सा विराम मिल जाएँ..

तो स्थान परिवर्तन का समय नज़दीक है, उत्साह के साथ थोड़ी सी झिझक है आने वाले कार्यों एवं गतिविधियों के लिए.. सामना करना है कुछ नई चुनौतियाँ का, निभानी है कुछ नई जिम्मेदारियाँ, कितना कुछ बदलने के कगार में है और कितना कुछ करना है.. इन सब के प्रति उत्साहित काफी हूँ क्योंकि कितना कुछ सीखने समझने को मिलने वाला है.. अब समय रहेगा थोड़े से संघर्ष एवं थोड़े से परिश्रम का.. थोड़ी सी झिझक भी है जगह बदलने को लेकर, फिर कईं सारी चीज़े की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी..

पर इतना जरूर है कि अब मुझे इतना कुछ अपने काम एवं अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए करना है कि अब और नकरात्मकता के लिए समय नहीं.. बहुत आराम कर लिया मैने, अब करनी है सही मेहनत अपने लिए..

हाँ, पर इन सब व्यवसायिक अस्तव्यस्तता में अपने व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित होने से बचाऊंगा, विशेष रूप से अपने खास लोगो को मैं उपेक्षा का शिकार नहीं होने दूंगा, क्योंकि यही तो वह लोग रहे है जो  हर परिस्थिति में मेरे साथ रहे..

चलो इतना लिखने से मन में उत्पन्न हो रहे हलचल को बाहर निकलने का रास्ता तो मिला, आखिर में मन में एक सच्चे उल्लास का संचार हुआ, वर्तमान में उपस्थित एवं भविष्य में आने वाले बेहतरी के कार्यों के लिए , जिसके लिए मैं हमेशा अपने प्रिय महाकाल भगवान का शुक्रगुज़ार रहूँगा.